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________________ PORANGOppamodPERSPORpreparPOROR दृष्टांतपचीसी. २५९ AmawaRAMMAR wwwwwwwwww forcedesrenteraden Grenen waren worden aardigan ___ सत्रहसे इक्यावनै, पोष शुकल तिथि वार ॥ जो ईश्वरके गुण लखै, सो पावे भवपार ॥२६॥ . इंति कर्ताअकर्तापचीसी. · अथ दृष्टांतपचीसी लिख्यते । दोहा. केवल ज्ञान स्वरूपमें, वसै चिदातम देव ॥ मन वच शीस नवायकैं, कीजे तिनकी सेव ॥१॥ एक शुद्ध परमातमा, दुविधि तास पद जान ॥ . त्रिविधि नमत हो जोर कर, चहुं निक्षेपन वान ॥२॥ सुरसति वर्षति मेघ जिम, जिन मुख अम्रत धारं ॥ पीवत है भवि जीव जे, ते सुख लहै अपार ॥३॥ जिय हिंसा जगमें बुरी, हिंसा फलं दुख देत ॥ मकरी मांखी भक्ष्यती, ताहि चिरी भख लेत ॥४॥ जिय हिंसा करते नहीं, धरते शुद्ध स्वभाय ॥ तौ देखौ मुनिराजके, सेवत सुरनर पाय ॥ ५॥ झूठ भलो नहिं जगतमें, देखहु किन हग जोय ॥ झुंठी तूती बोलती, ता ढिग रहै न कोय ॥६॥ सांच.बडो संसारमें, मानत सब परमान ॥ सांच सूआ कहै रामको, सुनत सबै धर कान ॥ ७॥ विन दीनों जे लेत हैं, ताहि लगै वह पाप ॥ ' चौरहि सूरी दीजिये, देखहु जंग संताप ॥ ८॥ (१) सप्तमी. MananpanwomepBOROPOpppppps wordenadora parerea mea Gregoren antrenoreta Beranders este coreowoders -
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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