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________________ Ganaw avasaasaDSRG TAGpapappuppamodateGoswamGRasranam REPrampaiwaseneowanendranamamalsarmere १२५० ब्रह्मविलासम परमातम उहि और है, रागद्वेप जिहिं नाहि ॥ ताको ध्यावत जीव ये, परमातम ह जाहिं ॥ १३ ॥ परमातम दै विधि लसै, सकल निकल परमान ।। तिसमें तेरे घट वस, देखि ताहि धर ध्यान ।।१२४॥ बाल-" कपूर हुवै अति उजलो रे मिरियासेती रंग" ए देशी. प्राणी आतम धरम अनूपरे,जगमें प्रगट चिद्रूप,पाणीटेका। इन्द्रिनकी संगति कियेरे, जीव परै जग माहि ॥ जन्म भरन बहु दुख सहरे, कबहू छुटै नाहि, प्राणी० ॥१२५।। भोंरो परचो रस नाककेरे, कमलमुदित भये रैन ॥ केतकी काटन बाँधियोरे, कई न पायो चन , प्राणी० ॥१२॥ काननकी संगत कियरे, मृग मारयो वन माहिं ॥ अहिपकरयो रस कानकरे,कितह छुट्यो नाहि,प्राणी०॥१२७॥ आँखनिरूप निहारकैरे, दीप परत है धाय ॥ देखहु प्रगट पतंगकोरे,खोबत अपनो काय, प्राणी० ॥१२८॥ रसनारस मछ मारियोरे, दुर्जन कर विसवास ॥ यात जगत विगूचियोरे, सहेनरकदुख वास,प्राणी० ॥१२॥ फरसहित गज बसपस्योरे वंध्यो सांकल तान ॥ भूख प्यास सवदुखसहरे, किहविधिकहहिवखान प्राणी०१३०॥ पंचेन्द्रियकी प्रीतिसोरे, जीव सहै दुख घोर ।। काल अनंतहिं जग फिरैरे, कहूँ न पावे ठोर, प्राणी ॥१३॥ मन राजा कहिये वडोरे, इंद्रिनको सिरदार ॥ आठ पहर प्रेरत रहेरे, उपजै कई विकार, प्राणी ॥१३॥ मन इंद्री संगति कियेरे, जीव परै जग जोय ॥ विषयनकी इच्छा वढेरे, कैसे शिवपुर होय,प्राणी० ॥१३॥ kionawanwarRPORPORDERepairendenawanamudrama a imVINONVanavnirdisavntestantiantertainmeGE
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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