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________________ २४५है RasabrenevenOEAD/EAvanesamaARIDEREDABADRImanupenpanwaroups/ PRERemarwanaperwepaswwermenPROMONSORE पंचेंद्रियसंवाद. कहा कहूं दृगदोपको, मोपें कहे न जाहिं ॥ देख विनाशी वस्तुको, वहुर तहाँ ललचाहिं ॥ ६९ ॥ जीभ कहै मोते सर्व, जीवत है संसार ॥ पटरस भुंजो स्वाद ले, पालों सव परिवार ॥७॥ मोविन आंखन खुल सके, कान सुनै नहिं वैन । नाक न सूंघे वासको, मो विन कहीं न चन ॥ ७१ ॥ मंत्र जपत इह जीभसी, आवत सुरनर धाय ।। . किंकर ह सेवा करै, जीभहिके सुपसाय ॥ ७२ ॥ जीभहित जपत रहै, जगत जीव जिन नाम । जसु प्रसादतै सुख लहै, पावै उत्तम ठाम ॥ ७३ ॥ ढाल-रे जीया तो विन घडीरे छ मास" ए देशी। यतीश्वर जीभ वडी संसार, जपै पंच नवकार, जतीश्वर० ॥ टेक ॥ द्वादशांगवाणी श्रवैजी, वोल वचन रसाल ॥ अर्थ कहै सूत्रन सवैजी, सिखवै धर्म विशाल, यतीश्वर०॥४॥ दुरजनतें सज्जन करजी, वोलत मीठे बोल ॥ ऐसीकलान आरपंजी,कौनआंख किह तोल, यतीश्वर०॥७५॥ __ जीभहित सब जीतिये जी, जीभहित सव हार ॥ जीभहित सव जीवकेजी, कीजतु हैं उपकार, यतीश्वर०॥७॥ जीभहित गणधर भयेजी, भव्यनि पंथ दिखाय ॥ आपन वे शिवपुर गयेजी, कर्मकलंक खपाय, यतीश्वर०॥७७॥ जीभहित उवझायजूजी, पावै पद परधान ॥ जीभहित समकित लडोज, परदेशी परवान, यतीश्वर०॥७॥ HOWROORPORATORE/Rocommopenwooks opencreaDOGDavabodapesaabapaupadaapaapoooo
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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