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________________ NAAMuWA INow ranspapeww KEEPnAmare/apemosepuppornoonwROHTAS शतअष्टोत्तरी. C: सम्यक रूप सदा गुण तेरोसु, और वनी सबही भ्रम माया । ए देखत रूप अनूप विराजत सिद्धसमान जिनंद बताया ॥४७॥ चेतन जीव! निहारह अंतर, ए सब है परकी जड काया , इन्द्रकमान ज्यों मेघघटामहिं, शोभत है मैं रहै नहिं छाया ॥ रैन समै सुपनो जिम देखें तु प्रात बहै सब झूट बताया। त्यों नदिनाव सँयोगमिल्यो तुम,चेतहु चित्तमें चेतन राया ॥४॥ है देहके नेह लग्यो कहा चेतन, न्यारी थे क्यों अपनी करमानी।। याहीसों रीझि अज्ञानमें मानिक, याहीमें आपुन रह्योथानी॥ देखतु है परतच्छ विनाशी तऊ, नहिं चेतत अंध अज्ञानी। है, होहु सुखी अपनो बल फोरिक, मानकह्योसर्वज्ञकी बानी ॥४९॥ समस्यापूर्ति-'चेतत क्यों नहिं चेतनहारे' सवैया । केवलरूप विराजत चेतन, ताहि विलोकि अरे मतवारे । काल अनादि वितीत भयो, अजहूं तोहि चेतन होत कहारे? ॥ है भूलिगयो गतिको फिरवो अब तो दिन च्यारि भये ठकुरारे। 8 लागि कहा रह्यो अक्षनिके संग, चेतत क्यों नहिं चेतनहारे'॥५०॥ ॥ वालक है तव वालकसी बुधि, जोवन काम हुतासन जारे। 8 वृद्ध भयो तव अंग रहे थकि, आये हैं सेत गये सब कारे॥ पाय पसारि परयो धरतीमहि, रोवै रटै दुख होत महारे | वीतीयांवात गयोसवभूलितू, चेततक्यों नहिं चेतनहारे॥५१॥3 वालपनं नित वालनके सँग, खेल्यो है ताकी अनेक कथारे। है जोबन आप रस्यो रमनीरस, सोउ तो वात विदीत यथारे ॥ वृद्ध भयो तन कंपत डोलत, लार परै मुख होत विथारे । देखिशरीरके लच्छन भैयात, 'चेततक्यों नहिं चेतनहारे।।५२॥ (१) इन्द्रधनुप. (२) इन्द्रियोंके. MandamPAROORDARSHURAMRPnpandanand w.orandparinaamRANGBansensurenawanRapoooprades supponsonapranooprospronparamporarappamoroupropowrappropos वृद्ध भयो तपस्यो धरतीमहि, तक्यों नहिँ चेतना कथारे ।
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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