SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ FEEWANAawanREAMVADODAROGRAPOONARIODS ... .......... मूढाष्टक. २२१ ॥ .. re PALI MAN---- शन पूरित करना, लोक हहला लाज ॥४॥ EDGDEVGorboorborebap Sapnaceourveawanapaninepaanprasasrdastisionaordsonapraniperspes रोगादिक संयोगसों, औपध परसन काज ॥ निकश जाय परदेश जो, आवत कर इलाज ॥ ४ ॥ केवल ज्ञानी आतमा, लोक हद्दलों जाय ॥ परदेशन पूरित कर, उदै न कछू वसाय ॥ ५॥ मरन समय जिहँ जीवको, समुदघात थित होय ॥ प्रथम परस गति आयक, वहुर जात है सोय ॥ ६ ॥ पष्टम गुण थानीनको, उपजै कहुं संदेह ॥ प्रश्न करत जिनदेवको, निकसत अद्भुत देह ॥ ७॥ सुर मनुष्य कर वैक्रिया, नाना ठौर रमाहिं ।। सव थानक परदेशजिय, निकसै आवै जाहि ॥८॥ तैजस वपु मुनिरायके, निकसत उभय प्रकार ॥ अशुभ शुभनके काजको, समुदघात तिहँ वार ॥९॥ तंतू सव लागे रहे, सुख दुख वेवे आप ॥ देहादिकके प्रसरते, परदेशनिमें व्याप ॥१०॥ 'भैया' वात अगम्य है, कहन सुननकी नाहिं ।। जानत हैं जिन केवली, जे लच्छन जिय पाहिं ॥ ११॥ इति समुद्धातस्वरूप. palapapaPoPospapebaap अथ मृढाटक लिख्यते । दोहा. चिन्मूरत चिंता हरन, पूरन वांछित आश ॥ अश्वसेन अंगज निला, नमूं जिनेश्वर पाशे ॥१॥ अपने शुद्ध स्वभावसों, करें न कबहू प्रीति ॥ 'लगे फिरहिं परद्रव्यसों, यह मूढनकी रीति ॥ २॥ १मणि. २ पार्श्वनाथ WORE/AMPARANEPARRIAGE-POORDANAPDRAPRIORDERS -
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy