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________________ २०४ vibha ब्रह्मविलास में ११. रोग परीसह - छप्पय. बात पित्त कफ कुष्ट, स्वास अरु खाँस खैण गनि । शीत ताप शिरवाय, पेट पीड़ा जु शूल भनि ॥ अतीसार अधशीस, अरा जो होय जलंधर । एकांतर अरु रुधिर, बहुत फोड़ा जु भगंदर ॥ इम रोग अनेक शरीरमहिं, कहत पार नहिं पाइये । मुनिराज सवन जीते रहें, औषधि भाव न भाइये ॥ १४ ॥ दोहा. ये एकादश वेदिनी, कर्म परीसह जान । मोहसहित वलवान हैं, मोह गये वलहान ॥ १५ ॥ . १२. नग्नपरीसह - कवित्त. 1 नगनके रहिवेको महा कष्ट सहवेको, कर्मवन 'दहवेको बडे महाराज हैं । देह नेह तोरवेको लोक लाज छोरवेको, पर्म प्रीति जोरवेको जाको जोर काज हैं। धर्म थिर राखवेको परभाव नाख वेको, सुधारस चाखवेको ध्यानकी समाज हैं। अंबरके त्यागेसों दिगम्बर कहाये साधु, छहों कायके आराध यात शिरताज हैं १६ १३. रतिभरतिपरीसह - कवित्त, आंखनिकी रति मान दीपक पतंग परै, नासिकाकी रतिमान भ्रमर भुलाने हैं । काननकी रतिमृग खोवत हैं प्राण निज, फरसकी रति गज भये जो दिवाने हैं ॥ रसनाकी रति सव जगत सहत दुख, जानत है. यह सुख ऐसें भरमाने हैं | इंद्रिनकी रति मान गति सब खोटी करै, ताहि मुनिराज जीत आप सुख माने हैं ॥ १७ ॥ Kodyapatante/asp/AdIANIAN feet
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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