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________________ PROPowdepoPARROWERPROOPomwapwappaMp3 १२०० ब्रह्मविलासमें जीव कौन पुद्गल कहा, को गुण को परजाय ॥ जो इतनो समुझे नहीं, सो भूरख शिरराय ॥ २६ ॥ पुण्य पाप वश जीव सब, वसत जगतमें जान ॥ "भैया' इनसे भिन्न जो, ते सव सिद्ध समान ॥ २७ ॥ इति पुण्यपापनगमूलपचीसिका. Gretserious testovane aventurinesteranenepeseminentevedrenese अथ बावीस परीसहनके कवित्त लिख्यते । दोहा. पंच परम पद प्रणमिके, प्रणमों जिनवर वानि ॥ कहों परीसह साधुकी, विंशति दोय वखानि ॥१॥ कवित्त. धूप सीत क्षुधाजीत तृषा डंस भयभीत, भूमिसैन वधवंध सहै है सावधान है। पंथनास तृणफांस दुरगंध रोगभास, नगनकी है इलाज रति जीते ज्ञानवान है । तीय मानअपमान थिर कुवच है नवान, अजाची अज्ञान प्रज्ञा सहित सुजान है।अदर्शन अलाभये परीसह हैं वीस बै, इन्है जीतै सोई साधुभाखे भगवान है॥२॥ . १. ग्रीष्मपरीसह. भीषमकीऋतुमाहिं जलथल सूख जाहि, परतप्रचंड धूप आगिसी बरत है। दावाकीसी ज्वाल माल वहत वयार अति, लागत लपट है कोऊ धीरन धरत है ॥ धरती तपत मानों तवासी तपाय राखी, है बड़वा अनलं सम शैल जो जरत है । ताके शृंग शिलापर जोर जुग पांव धर, करत तपस्या मुनि करम हरत है ॥३॥ 0 . ... . ' २. शीतपरीसह. शीतकी सहाय पाय पानी जहां जम जाय,,परत तुषार आय fooooo/DOCOMORROOPPPROMORROR PoorancomparnaDSDAdaomadranadowancervancoremac00-00amsooconomGRA
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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