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________________ AAAAAAAAAAAAPAN WARAM PRESORPORPomoeopansoprowmwamwOOMGOS ब्रह्मविलासमे. चांद्रायण. छन्द। पुण्यपापको खेल, जगतमें वनि रह्यो । इनहीके परसाद, सुखी दुखिया कह्यो। दोउ जगतके मूल, विनाशी जानिये। इनहीतें जो भिन्न, सुखी सो मानिये ॥ १४ ॥ मोह मगन संसार, विषय सुखमें रहै। __ कर न आप सम्हार, परिग्रह संग्रहै ॥ जाने यह थिर वास, नाश नहिं होयगो। पाके मानुप जन्म, अकारथ खोयगो ॥ १५ ॥ देवधर्म परतीति, परीक्षा सांच की। सीखै नाहिं सुदृष्टि, रतन अरु कांचकी ॥ जन्म अकारथ जाय, सुनो मन वावरे । पीछे फिर पछताय, बहुर नहिं दावरे ॥ १६ ॥ पुण्य पाप परतक्ष, दोउ जगमूल है । इनहीसें संसार, भरमकी भूल है। केवल शुद्ध स्वभाव, लखै नहिं हंसको। __ताही ते द्रुम होय, करमके वंशको ॥ १७ ॥ शुद्ध निरंजन देव, सदा निज.पास है।। .ताको अनुभव करो, यही अरदास है ॥ कबहू भूल न जाहु, पुण्य अरु पापमें। . केवल ज्ञान प्रकाश, लहोगे आपमें ॥१८॥ Pretortagem postoperesserelovetowoanderetanatopatagaoterets properereadoresteetan ErowapasranduraneprencensorenadanepooranGOAnoopanoranhopponepanapanese न जाने सब प्रतियोंमें इसको 'सरिल क्यों लिखा है. अरिल १६ मात्राका होता और इसमें ११ मात्रा है, इसे 'तिलोकी भी कहते हैं. hansaasRwanSampePeoponwanapUDARPAN
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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