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________________ Breasooooooooooooooooooooprogrammercomcrasoerancescooperapeopapar PRODDROPPEPRAMONSORIJANWARWADIANTARJEN ११८४ ब्रह्मविलासमें अनाचार, कहते न आवैलाज ऐसो ही पुरान है। अहो महाराज यह है कौन काज मत कीनो, जगतके डोबिवेको ऐसो सरधान है ॥१६॥ स्त्रीरूपवर्णन-मात्रिक कवित्त. बडी नीत लघु नीत करत है, वाय सरत वदवोय भरी। __फोडा बहुत फुनगणी मंडित, सकल देह मनु रोग दरी ।। शोणित हाड मांस मय मूरत, तापर रीझत घरी घरी। ऐसी नारि निरखिकर केशव रसिकप्रिया'तुम कहा करी१९ ॥ सवैया. (मत्तगयन्द) है जो जगको सब देखत है-तुम, ताहि विलोकिकें काहे न देखो। जो जगको सब जानतु है, तुम ताहि जुजानो तो सूधो है लेखो॥ जो जगमें थिर है सुखमानत, सो सुख वेदत कौन विशेखो। है घटमें प्रगटै तबही, जवही तुम आप निहारके पेखो ॥२०॥ कुपंथ वर्णनकवित्त. ए सोई तो कुपंथ जहां द्रव्यको नजाने भेद,सोईतो कुपंथ जहां है लागि रहे परसें । सोई तो कुपंथ जहां हिंसामें वखाने धर्म, सो ई तो कुपंथ जहाँ कहै मोक्ष घरसें॥सोई तो कुपथ जो कुशीलीपशु देव कहै, सोई तो कुपंथ जो कुलिंगी पूजै डरसें । सोई तो र कुपंथ जो सुपंथ पंथ जानै नाहिँ , विना पंथ पाये मूढ कैसें मोक्ष दरसै ।। २१ ॥ ProprabapanavarooprdsapsowrimprocessarvanapranapanacanamanchpanROR (१) दंतकथामें प्रसिद्ध है कि केशवदासजी कवि जो किसी प्रोपर मोहित थे। , उन्होंने उसके प्रसन्नार्थ 'रसिकप्रिया' नामका ग्रंथ बनाया.. वह ग्रंथ समालोचनार्थ 'भैया' भगोतीदासजीके पास भेजा तो उसकी समालोचनामें यह कवित्त रसिकप्रियाके? पृष्ठपर लिखकरके वापिस भेज दिया था.(२) गौ आदिक कुशीली पशुओंको देवं मानते है. georang weer terrassendragostera
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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