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________________ FRODrespenweaveenpanwro ODIOGRoRODROINDIGENDER PROPERPEACOMoodhmapVOnPROPOROGRAM शतअष्टोत्तरी. को करमैं करतु है । कर्मको जनैया(भैया)सोतो कर्म करै नाहि, है धर्म माहि तिहूंकाल धरमें धरतु है।दुहूंनकी जाति पांति लच्छन स्वर भाव भिन्न, कबहून एकमेक होइ विचरतु है।जा दिनातें ऐसी दृष्टि अन्तर दिखाई दई, तादिनाते आपु लखि आपुही तरतु है ॥२२॥ सवैया.. ___ जीव अकर्ता कह्यो परको, परको करता पर ही परवान्यो। ज्ञान निधान सदा यह चेतन, ज्ञान करै न करै कछु आन्यो। ___ज्यों जग दूध दही घृत तक्रकी, शक्ति धरै तिहुं काल वखान्यो। । कोऊ प्रवीन लखें हगसेतीसु, भिन्न रहैवपुंसोलपंटान्यो।॥२३॥ मात्रिक कवित्त. चेतन चिह्न ज्ञान गुण राजत, पुद्गलके वरणादिक रूप। . चेतन आपरु आन विलोकत, पुग्गल छाँह धरै अरु धूप॥ चेतनकै थिरता गुण राजत, पुग्गलकै जड़ता जु अनूप । चेतन शुद्ध सिधालय राजत, ध्यावत है शिवगामी भूप ॥२४॥ कवित्त. , जीवहू अनादिको है कर्महू अनादिको है, भेदहू अनादिको है सर्व है। । दोऊदलमें। रीझवेको है स्वभाव रीझनाहीं है स्वभाव, रीझवे. को भावसो स्वभाव है अमलमें।। साँचेही सो करै प्रीति सांचेसों नकरी प्रीति, सांची विधि रीतिसो बहाय दई पलमें । ज्ञान गुन । काम कीने काम के न काम कीने, ध्यानमें मुकाम कीने वसे आप इथलमें ॥ २५॥ . दासीनके संग खेल खेलत अनादि बीते, अजहूं लों वहै बुद्धि कौन चतुरई है । कैसी है कुरूपकारी निशि जैसें अँधियारी, औ (न रहै ऐसा भी पाठ है.. aropoPARWAROOPPERSORDPROPOROPOPPROPORON GoooooooooolapapasveoopeapoooooooooooooooooooooooooOOR
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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