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kawanpeopramoonawanRYOopenwwwRAPOOR अकृत्रिम चत्यालयकी जयमाला.
१६५ और कहूं जिनमंदिर धान । इक्ष्वाकारहिं चार प्रमान ॥ है कुंडलगिरिकी महिमा सार । चैत्य जु चार नमूं निरधार ॥१३॥
रुचिकनाम गिरिमहा बखान। चैत्य जु चार नम उर आन ॥ १ नंदीश्वर वावन गिरराव । वावन चैत्य नमहुं धरभाव ॥१४॥
मध्यलोक भविके मन भावन। चैत्य चारसौ और अठावन ॥ है तिन जिन मंदिरको निशदीसा वंदन करों नाय निज शीस ॥१५॥ न्यंतर जाति असंखित देव । चैत्य असंख्य नमहं इह भेव ॥ ज्योतिष संख्याते अधिकाय । चैत्य असंख्य नमूं चितलाय॥१६॥ अव सुरलोक कहूं परकाश । जाके नमत जाहिं अघनाश ॥1 प्रथम स्वर्ग सौधर्म विमान । लाख वतीस:नमूं तिहँ थान ॥ १७॥ में दूजो उत्तर श्रेणि इशान । लक्ष्य अठाइस चैत्य निधान ॥ ॥ इतीजो सनत कुमार कहाय । वारह लाख नमूं धर भाय ॥१८॥
ो स्वर्ग महेन्द्र सुठामि । लाख आठ जिन चैत्य नमामि हैं ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर दोय । लाख च्यार जिन मंदिर होय ॥१९॥ में लांतव और कहूं कापिष्ट । सहस पचास नमूं उत किष्ट ॥
शुक्रर महा शुक्र अभिराम। चालिस सहसनि करूं प्रणाम २० सतार सहस्रार सुर लोक । पट सहस्र चरनन द्यों धोक ॥
आनत प्राण आरण अच्युत् । चार स्वर्गसे सात संयुत्त ॥२१॥ है प्रथमहि त्रैव चैत्य जिन देव । इकसो ग्यारह कीजें सेव ॥ ६ मध्यग्रेव एकसो सात । ताकी महिमा जग विख्यात २२ में उपरि अव निन्दै अरु एक । ताहि नमूं धर परम विवेक ॥
नव नवउत्तर नव प्रासाद । ताहि नमूं तजिके परमाद ॥२३॥ है सबके ऊपर पंच विमान । तह जिनचैत्य नमूं धरध्यान॥
सब सुरलोकनकी मरजाद कही कथन जिनवचन अनाद२४ । MemoramanupenacappOPARANOROPawanpeop
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