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________________ REPARRORPOPPERSanawanpanwerPowRODE .. ब्रह्मविलासमें Beerdere ordinea d बंधः सकल पुद्गल परपंच । चेतन माहिं न दीसे रंच ॥ लोक अलोक विलोकनवंत । 'भैया' वह पद प्रगट करत॥१४॥ दोहा. ये दश भेद लखे लखहिं, चिदानंद भगवान ॥ जामें सुख सब सास्वते, वेदह सिद्ध समान ॥१५॥ इति कर्मबंधके दशमेदवर्णन। - e coverage coordonareadouro अथ सतभंगीवाणी लिख्यते. दोहा. वंदों श्रीजिनदेवको, वंदों सिद्ध महंत ॥ बंदों केवल ज्ञान जो, लोक अलोक खंत ॥१॥ सप्तभंगवाणी कहूं, जिनआगम अनुसार ॥ जाके समुझत समझिये, नीके भेद विचार ॥२॥ चौपाई. अस्ति नास्ति गुण लच्छनवंत । प्रथम दरब यह भेद धरंत ॥ ये गुण सिद्ध करनके काज । सप्त भंग भाखे मुनिराज ॥शा हूँ प्रथम द्रव्य अस्ति नय एह । नास्ति कहै दूजी नय जेह ॥ तीजी अस्तिनास्ति निहार । चौथी अवक्तव्य नय धार॥४॥ पंचमि अस्तिअवक्तव्य कही। छट्टी नास्तिअक्तव्य लही॥ है इसप्तमि अस्तिनास्तिअवक्तव्य । इनके भेद कहूं कछु अब्ब॥५॥ अस्ति दरबको मूल स्वभाव । नास्ति परणम निपट निनाव ॥ है अथवा और दरवं सो नाहिं । ताहि उपेक्षा नाम कहाहिं ॥६ अस्तिनास्ति गुण एकहि माहि। दुहुगुण द्रवलच्छन उहिराहिं ॥ अस्तिनास्ति विन दवें न होय । नय साधेत भ्रमनहिं कोय||७ TwpROPPERSOAMRAPOORAMAnmommmmm RepobsGpapadanapranapranavrapur/NEDAGraparnaordinapraoniorapAGDIdol
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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