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________________ Bop de 50 db God १४६ do do do do do dis so dit be as so dia do do do do go Koerd ब्रह्मविलासमें जसरथ राजाके सुत कहे । देश कलिंग पांचसो लहे ॥ कोटि शिला मुनि कोटि प्रमांन। वंदन करों जोर जुग पान ॥ १९ ॥ समवशरण श्रीपार्श्वजिनंद । रिशंदेह गिरि नयनानंद ॥ वरदचादि पंच ऋषिराज । ते बंदों नित धरम जिहाज ||२०|| तीन लोकके तीरथ जहां । नितं प्रति वंदन कीजे तहां ॥ मन वच भाव सहित शिर नाय । वंदन करें भविक गुण गाय ॥२१ संवत सत्रहसो इकताल । अश्विन सुदि दशमी सुविशाल|| 'भैया' वंदन करहि त्रिकाल । जय निर्वाणकांड गुण माल||२२|| इति निर्वाणकांडथापा. " अथ एकादशगुणस्थानपर्यन्तपंथवर्णन लिख्यते ॥ दोहा. कर्म कलंक खपायक, भये सिद्ध भगवान || नित प्रति वदों भाव धर, जो प्रगटै निज ज्ञान ॥ १ ॥ कहीं पंथ इह जीवके, किहूँ मग आवै जाय ॥ गुण थानक दश एकलों, धेरै जनम मृत भाय ॥ २ ॥ भव्य राशितें निकसिकै, मुक्ति होनके काज ॥ चढहि गिरहि इम पंथमें, अंत होंहिं महाराज ॥ ३ ॥ चौपाई. · प्रथम मिथ्यांत नाम गुंण थान । उभय भेद ताके परवान ॥ I एक अनादि नाम मिथ्यांत । दूजो सादि कह्यो विख्यात ॥४॥ प्रथम अनादि मिथ्याती जीव । पंथ तीनको धेरै सदीव ॥ पंचम सप्तम जाय । गिरैतो फिर मिथ्यापुर आय॥१५॥ सादि मिथ्यात्व जीव जो धरै । पंथ चार ताके विस्तरे ॥ चौथे 1 de de de de de de do PANDANNAESE AEGs as as
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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