SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ TwenwwerpendenwanSanweronwRORISONE सिद्धचतुर्दशी. १४१ कवित. fananananana ANAVANSTVanuatan है आतम अनोपम है दीसै राग द्वेष बिना, देखो भव्यजीव! तुम आपमें निहारकै । कर्मको न अंश कोऊ भर्म को न वंश कोऊ, जाकी सुद्धताई मैंन और आप टारकें। जैसो शिव खते वसै तेसो है ब्रह्म इहां लसै, इहां उहां फेर नाहि देखिये विचारकै । जेई गु-1 सिद्धमाहि तेई गुण ब्रह्मपाहि, सिद्ध, ब्रह्म फेर नाहिं निश्चय निरधारक ॥२॥ सिद्धकी समान है विराजमान चिदानंद है ताहीको निहार निजरूप मान लीजिये । कर्मको कलंक अंग है है पंक ज्यों पखार हरयो, धार निजरूप परभाव त्याग दीजिये। थिरताके सुखको अभ्यास कीजे रन दिना, अनुभोके रसको सुधार भले पीजिये । ज्ञानको प्रकाश भास मित्रकी समान दीस, चित्र ज्यों निहार चित ध्यान ऐसो कीजिये ॥३॥ भाव कर्म नाम रागद्वेपको वखान्यो जिन, जाको करतार जीव भर्म संग मानिये। द्रव्यकर्म नाम अष्टकर्मको शरीर कह्यो, ज्ञानावर्णी , आदिसब भेद भल जानिये । नोकरम संज्ञात शरीर तीन पावत है, औदारिक वैक्रीय आहारक प्रमानिये ॥ अंतरालसमै जो अहै हार विना रहे जीव, नो करम तहां नाहि याहीत वखानिये ॥४॥ ersonaprasauranapranawanapanaprasttpraptopasawantwaneouponsorancoreonabrowsamund संवैया. WNWEPA anawanie है लोपहि कर्म हरै दुख भर्म सुधर्म सदा निजरूप निहारो। ज्ञानप्रकाश भयो अघनाश, मिथ्यात्व महातम मोहन हारो॥ चेतनरूप लखो निजमूरत, सूरत सिद्धसमान विचारो । ज्ञान अनंत वह भगवंत, वसैअरि पंकतिसों नित न्यारो ॥५॥ RaranepanwarwAweneMPARDarpanpapappawars
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy