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________________ R SurenoNepaRPeoponsoonawana .. गुणमंजरी. ....... १३१ अव कहुं - उपादेयकी. वात । जामें ग्रहण अर्थ विख्यात ॥ निज़ स्वरूप जो आतमराम । चिदानंद है ताको नाम ॥५१॥ ज्ञान दरश चारित भंडार । परमधरम धन धारन हार ॥ निराकार . निरभय निररूप । सो अविनाशी ब्रह्म स्वरूप ५२ ताकी महिमा जानहिं संत । जाकी सकति अपार अनंत ॥ ९ ताहि उपादेय. जानहिं जोय । सम्यकदृष्टी कहिये सोय ॥५३॥ निज स्वरूप जो ग्रहण करेय । परसत्ता सब त्यागे देय ।। ऐसे भाव धरहि जो कोय । हेय उपादेय कहिये सोय ॥५४॥ अव धीरज गुण कहूं वखान । जिनके ते सम दृष्टी जान ॥ धर्मविषै जो धीरज धरै । कष्टदेख सरधा नहि टरै ॥५५॥ सहै उपसर्ग अनेक प्रकार । सबहू धीरज है निरधार ॥ मिथ्यामत जो देखै कोय । चमत्कार तामें वहु होय ॥५६॥ तबहू ताहि लखहि अज्ञान । सो धीरजधर सम्यकवान || अब कहुं हरप गुणहिं समुझाय। समदृष्टीयह सहजसुभाय।।५७॥ निज स्वरूप निरखहि जो कोय । ताके हर्ष महा उर होय ॥ सुख अनंतको पायो ईस । तिह निरखै हरपैनिसदीस॥५८॥ छहों द्रव्यके गुण परजाय । जाने जिन आगम सुपसाय ।। निज निरखै सु विनाशी नाहिं । यात हर्ष महा उर माहिं ॥५॥ तीर्थकर देवनके देव । ताकी प्रभुताके सव भेव ॥ अनंत चतुष्टय आदि विचार । हर्षे ते निज माहि निहारा॥३०॥ जन्म जरादिक दुख बहु जान । तिहते भिन्न अपनपो मान । सिद्धसमान विचारहि चित्त...तातें हर्ष महा उर नित्त ॥३१ अब गुण कहूं प्रवीन बखान । जिनके ते समदृष्टी मान ॥ ३.स्वपरविवकी परम . सुजान । प्रगव्योवोधमहा परधान ॥३२॥ सुप्रशाद. PawanwarooraparARPAR/NEnRPranaPoWARPAN wapranayepargavarangapproveoameraprasrepyoooooorestonomoap omamdarproopeopranaprebapoaranapa n aademaana/8G-GOOGOVODEVAR
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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