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________________ M Muveerinavis RavasaampAmrehothawaRDEDisapanaarasvesawesvasavam HOSPIRRORDwenawareneonsapnwarw/chaPRONOR . सिन्झाय और पंचपरमेष्ठिनमस्कार. १२५ mami दोहा. · गुण अनंत भगवन्तके, निहचै रूप वखान ॥ ये कहिये व्यवहारके, भविक, लेहु पर आन.॥२०॥ 'भैया' निजपद निरखतै, दुविधा रहै न कोय ।। श्रीजिनगुणकी मालिका, पढ़ें परम सुख होय ॥ २१ इति श्रीजिनगुणमालिका. अथसिज्झाय लिख्यते. करखा छंद. . । जहँ कर्मके वंश,सों अंश नहिं लसै, सिद्ध सम आतमा ब्रह्म ज्ञानी ॥ है मोह मिथ्यात्वमद,पान दूरहिं नशै, राग अरुद्धेपहू जास थानी॥१॥ नहि क्रोधनहिंमान थानभासै कहूं,माय नहिलोभ जहँदूरदीखे चहूं। प्रकृति परद्रव्यकी सर्वमानी,भली सिद्ध समआतमाब्रह्म ज्ञानी॥२॥ हे जामें ज्ञान अरु दर्श चारित गुणराजही, शकति अनंत सबै ध्रुवछाजही ।। परम पद पेख निजराजधानी, सिद्ध समआत्मा ब्रह्म ज्ञानी ॥ ३ ॥ अतीत अनागत वर्तमानहिं जिते, दरव गुण परजय सर्व भासहि तिते ॥. शुद्ध नय सिद्ध जिम जानिप्रानी, सिद्ध सम आत्मा ब्रह्म ज्ञानी ॥ ४॥ .. अथ पंचपरमेष्ठिनमस्कार। . . दोहा. . . : .. प्रातसमय श्रीपंच पद, वंदन कीजे नित्त । भाव भगति उर आनिकै निश्चय कर निजचित्त ॥१ ... चौपाई १.६.मात्रा. ... ..... मातहिं उठि जिनवर प्रणमीजै। भावसहित श्रीसिद्ध, नमीजै ॥ आचारज. पद वंदन कीजैः । श्री.जवझायावरणचितदीज॥२॥ copapparappaapappearwanchapanasanacpapers ERODESEPeopranavadeooo-modanewswoopraoraoupload/coacramap- cocomsome
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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