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________________ Sier r osta encausterasektorebrorrorogarlarda operate REPARRORE/AROORDARPERSORPORPORDARDARPAPER १ १२२ ब्रह्माविलासमे : . जाके चेतना सुभाव है। असंख्यात परदेश पूरित प्रमान वन्यो, अपनें सहज माहिं आप ठहराव है ।। राग द्वेष मोह तो सुभाव हैं में न याके कहूं, यह तो विभाव पर संगति मिलाव है। आतम, . सुभावसों विभावसों अतीत सदा, चिदानन्द चेतवेको ऐसे में उपाव है।॥ १०॥ ३ राग द्वेष भ्रम भाव लग्यो है अनादिहीको, जाके परसाद है परभावनि वहतु है। बंधत अनेक कर्म इनको निमित्त पाय, तिनहीके फल सब यह पै सहतु है ॥ चहुंगति चौरासीमें जनम जराके दुःख, मरन मिथ्यात भाव यहै तो लहतु है । याही क्रम काल तो अनन्त वीत गयो तहां, अजहुंलों चिदानंद चेतो न चहतु है ।। १५॥ मिथ्या भाव जालों तोलों भ्रमसों न नातो टूटै, मिथ्याभाव र जौलों तौलों कर्म सों न छूटिये । मिथ्याभाव जोलोंतोलों सम्यक है न ज्ञान होय, मिथ्या भाव जौलों तोलों अरि नाहिं कूटिये ।। मिथ्या भाव जौलों तौलों मोक्षको अभाव रहै, मिथ्या भाव है जौलों तौलों परसंग जूटिये । मिथ्याको विनाश होत प्रगटै प्रकाश जोत, सूधौ मोक्ष पंथ सूधै नेकु न अहूटिये ॥ १२ ॥ . छप्पय. ऊरध मध अध लोक, तासुमें एक तिहूं पन । किसिहिन कोउ सहाय, याहि पुनि नाहि दुतिय जन ॥ जो पूरव कृत कर्म भाव, निज आप बंध किय। . . सो दुख सुख द्वयरूप, आय इहि थान उदय दिय॥ . तिहि मध्य न कोऊ रख सकति, यथा कर्म विलसंत तिम . . .सब जगत जीव जगमें फिरत ज्ञानवंतःभाषत इम॥ १३ ॥ kimasom/DDARPADMROPERMIRPROORan Ramabranprnoopenbanoopencomcobacacanapanapropoaranaprana
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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