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________________ Benderannoccingereagerige ha PROPOpepepeperpeneraoymproconomwappONSORS. मिथ्यात्वविध्वंसनचतुर्दशी. काया नगरी जीव नृप, अष्ट कर्म अति जोरं ॥ . ___ भाव अज्ञानदासी-रचे, पगे विषयकी ओर ॥ १०॥. विषयबुद्धि जहां है नहीं, तहां सुमतिकी चाह ।। जो सुमती सो कुल त्रिया, इहि याको निरवाह॥१॥ आप पराये वश परे, आपा डारयो खोय॥ . आपा आपु न जानहीं, कहो आपु क्यों होय ॥१२॥ आप न जानें आपको, कौन वतावनहार ॥ तबहिं शिष्य समकित लह्यो, जान्यों, सबहि विचार ॥ इहि गुरु शिष्य चतुर्दशी, सुनहु सवै मनलाय ॥ कहै दास भगवंतको, समताके घर आय ॥ १४ ॥ • इति गुरुशिष्यचतुर्दशी. . अथ मिथ्यात्वविध्वंसनचतुर्दशी.. ___ छप्पय. वन्दह ऋषभ जिनेन्द्र, अजित संभव अभिनन्दन । . सुमति सु पद्म सुपार्च, बहुरि चन्द्रप्रभ वंदन ॥ . सुविधि शीतल श्रेयांश, वासुपूजहिं सुखदायक। विमल अनंत रु धर्म, शान्ति कुंथ जु शिवनायक ॥ अर मल मुनसुव्रतनमत, पाप पुंज पंकति हरिय। नमिनेम पार्श्व जिन वीर कह, भवित्रिकाल वंदन करिय॥१॥ . .. कवित्त मनहर. मिथ्या गढ़ भेद भयो अन्धकारनाश गयो, सम्यक प्रकाश.लयो, ज्ञानकला भासी है । अणुव्रत भाव धरै महावृत अंगी करें, है श्रेणीधारा चढ़े कई प्रकृत विनासी है ॥ मोहको पसारो डारि MORRORGOOGoooooooomnpanwarpena Ramropatpramudrapaproproacroc00000000rovanoranapranamo werowerowerowerowerowerownice garderoom o np o no
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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