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________________ but da je - ब्रह्मविलासमें ९८ ANAMAN तबलधारी है सो सदा ब्रह्मचारी है, ऐसे जिन वंदत रहै न दशा रोगकी ॥ २२ ॥ श्रीपार्श्वनाथ जिनस्तुति छप्पय. अम्रत जिनमुख झरै, द्वार सुरदुंदुभि वाजै । सेवहिं सुरनर इंद्र, नाग फन शीश विराजै ॥ . नगर बनारसि नाम, तात अससेन कहिज्जे । वामा मात विख्यात, जगत जिन पूजा किज्जे ॥ सुअनंत ज्ञान वल रूपधर, आप जगत तर सिद्धहुव । चंदै सुभव्य नर लोकके, जय जय पास जिनंद तुव ॥२३॥ श्रीवीरजिनस्तुति. जिनवर श्रीमहावीर, इन्द्र सेवा नित सारहिं । सुरनर, किन्नर देव तेहु, मिथ्या मत टारहिं ॥ क्षत्रिय कुल जिन जन्म, राय सिद्धारथ नंदन | त्रिशला उर अवतार, सिंह पद पाप निकंदन ॥ विधिचार संघ सुन देशना, केवल वचन विशाल अति । जिनप्रभु वंदत सम भावधर, जय जय दीनदयाल मति ॥ २४ ॥ दोहा. जिन चौवीसी जगतमें, कलपवृक्षसम मान ॥ जे नर पढ़ें विवेकसों, ते पावहिं शिवथान ॥ २५ ॥ इति चतुर्विंशतिजिनस्तुतिः । अथ विदेहक्षेत्रस्थ वर्तमानजिनविंशतिका. श्रीसीमंधरजिनंस्तुति–उप्पय. सीमंधर जिनदेव, नगर पुंडरिगिर सोहै । वंदहि सुरनर इन्द्र, देखि त्रिभुवन मन मोहै ॥ in de de de de de de de de doub Hoe dose doopas op de ab asas de de de de HIG
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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