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________________ Son-propeacocorepaoranepanacpomorporamasomauropranodeoamropaperemovemeprened gawondolencescom/mPORDPOOR वर्तमानचतुर्विशतिजिनस्तुति. ९५ मदहन, ज्ञानको प्रकाशई ॥ लच्छन श्रीवृच्छपाव शीतल श्रीनाथ नाव, भद्दल जिनंद गांव रवि ज्यों उजासई । देशना सुदेह १ सार होंहि तहाँ जैजैकार, भव्यलोक पावे. पार मिथ्याको विनाशई ॥१०॥ .. श्रीश्रेयांसनिनस्तुतिमात्रिक कवित्त. श्रीपुर नगर जगत सव जान, विघ्नराय विसनाके नंद समवशरनमधि जिनवर शोभत, मोहत है नृपके कुलवृंद ।। लच्छन खग सेवै चरणादिक, तीर्थकर श्रेयांस जिनंद । तिनके चरणन चित्तलायकें, वंदत हैं नित इंदनरिदं ॥११॥ श्रीवासुपूज्यनिनस्तुति. श्रीवासुपूज्य चंपा नगरी पति, महिपी लंछ मही सब जाने। वासुपूज राजाकुल मंडन, जायासुत सब जगत वखाने । सुरपति आय सीस नित नावे, प्रभुसेवा निजमनमें आने ।। सम्यकदृष्टि नितप्रति सेवहिं, जिनके वचन अखंडित मान ।।१२ श्रीविमलजिनस्तुति-छप्पय. विमलनाथ इकदेव, सिद्धसम आप विराजै।.. त्रिभुवनुमाहिं जिनंद, जासु धुनि अंवरगाजै॥ . कंपिलपुर जिन-जन्म, शुक्र लंछन महि माने। . सुरपति सेवहिं पाय, जगत्रयमाझ वखाने ।। कृतवर्म भूप स्यामाजननि, केवलज्ञान दिवाकरन । तस चरन कमल वंदत'भविक जयजिनवरतारनतरन ॥१३॥ 0. . . . श्रीअनन्तजिनस्तुति-मात्रिक कवित्त... . अनंत नाथ सीचाना लंछन, सुजसा मातःकहै सब कोय । PrasoompanPIRPROCEROSAROPORPORapers thavasaanaraaananaanaananaananaananaareenarendranapandana
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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