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________________ यशोविजय (४८) राग धन्याश्री- तीन ताल [ ५३ ] जब लग आवे नहिं मन ठामं ॥ टेक ॥ तब लग कष्ट क्रिया सवि निष्फल, ज्यों गगने चित्राम ॥ ज० १ ॥ करनी बिन तुं करेर मोटाइ, ब्रह्मवती तुझ नाम । आखर फल न लहेगो ज्यों जग, व्यापारी बिनु दाम ॥ ज० २ ॥ मुंड मुंडावत सबहि गडरिया, हरिण रोझ बन धाम । जटाधार वट भस्म लगावत, रासभ सहतु हे घाम ॥ ज० ३ ॥ ते पर नहीं योगको रचना, जो नहि मन विश्राम | चित अंतर पट छलवेकुं चिंतवत, कहा जपत मुख राम ॥ ज० ४ ॥ वचन काय गोपें दृढ़ न घरे, चित्त तुरंग लगाम | तामेतुं न लहे शिव साधन, जिउ कण सुने गाम ॥ ज०५ ॥ पढो ज्ञान धरो संजम किरिया, न फिरायो मन ठाम | चिदानंदघन सुजस विलासी, प्रगटे आतमराम ॥ ज० ६ ॥
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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