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________________ यशोविजय [४९ राग विहाग-तीन ताल चेतन जो तुं ज्ञान अभ्यासी । आपहि बांधे आपहि छोडे, निज मति शक्ति विकासी ॥ चे० ॥ १॥ टेक ॥ जो तुं आप स्वभावे खेले, आशा छोरी उदासी। . सुर नर किन्नर नायक संपति, तो तुझ घरको दासी ॥ चे० ॥ २ ॥ मोह चोर जन गुन धन लुसे, देत आस गल फांसी । आशा छोर उदास रहेजो; सो उत्तम संन्यासी ॥ चे० ॥ ३ ॥ जोग लइ पर आस धरत हे, याही जगमें हांसी। तुं जाने में गुन कुं संचु, गुन तो जावे नासी ॥ चे० ॥ ४ ॥ पुद्गल की तुं आस धरत हे, सो तो सबहिं विनासो । तुं तो भिन्न रूप हे उनतें, चिदानन्द अविनासी ॥ चे० ॥ ५॥ धन खरचे नर बहुत गुमाने, करवत लेवे कासी । तो भी दुःख को अन्त न आवे, जो आसा नहीं घासी॥ चे०६॥
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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