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धर्मामृत
राग काफी
किसके चेले किसके पूत, आतमराम अकिला अबधूत ।
जिऊ जान ले ॥ अहो मेरे ज्ञानी का घर सुत, जिऊ जान ले, दिल मान ले ॥१॥ आप सवारथ मिलिया अनेक, आए इकेला जावेगा एक ॥
जि० दि० ॥२॥
मढी गिरंदकी झूठे गुमान, आजके काल गिरेंगी निदान
जि० दि० ॥३॥ तीसना पावडली बर जोर, बाबु काहेकुं साचो गोर ॥ .
जि० दि० ॥ ४॥ गि अंगिठी नावेगी साथ, नाथ रमोगे खाली हाथ ॥
जि० दि० ॥५॥ माशा झोली पत्तर लोभ, विषय भिक्षा भरी नायो थोभ ॥
जि० दि० ॥ ६ ॥ करमकी कथा डारो दूर, विनय विराजो सुख भरपूर ॥
जि० दि० ॥ ७॥