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________________ [ ३६ ] धर्मामृत (३३) राग छाया नट-तीन ताल थिर नांहि रे थिर नाहि, यावत धन यौवन थिर नांहि । पलक एकमें छेह दिखावत, जैसी बादल की छांहि ॥ थिर० ॥ १ मेरे मेरे कर मरत बिचारे, दुनियां अपनी करी चाही । कुलटा स्त्री ज्यों उलटा होवे, या साथ किसीके ना याहि ॥ थिर० २ ॥ कहे दुनियां कहा हसे बाउरे, मेरी गति समजों नांहि । केते ही छोरे में प्यासे, केते ओर गहे बांहि ॥ थिर० ३ ॥ सयन सनेह सकल हे चंचल, किस के सुत किसकी माइ । रितु बसंत शिर रुग्व पात ज्यौं, जाय परोगे को कांही ॥ थिर० ४ ॥ अजरामर अकलंक अरूपी, सब लोगनकु सुखदाइ । विनय कहे भय दुःख बंधन ते, छोडनहार वे सांइ ॥ थिर०५ ॥
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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