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________________ [२८] धर्मामृत (२५) राग सोरठ बड़ि दगाबाज रे, तूं बडि दगाबाज प्यारी, तूं बढ़ि दगाबाज | टेक 1 तेरे खातर डूंगर दरी बिच, रही दुःख सह्यो में अपार । हांसी खूसी बहु नातरां कीधां, तूं कांइ भूलि गवार ॥ तूं ० १ ॥ 1. 1 कवडी साटे तेर खातर, माहरो कीधो मोल | धूंढक योगी यति संन्यासी, मुंडित कियो ते रोल ॥ तूं० २ ॥ मुडो बांधी का ते फाडी, बहुविध वेस कराय | दान करी सहु पाखंड कीघां, जन लुंट्यो मन भाय रे ॥ तुं० ३ ॥ घर घर भटक्यो तेरे साये, पोते पाप भराय | अब तूं काह न बोले मोसुं, तुं कपटीनी दिखलाय ॥ तूं० ४ ॥ ऐसो देखी भयो हुं ऊदासी; निधि चारित्र लहाय । ज्ञानानंद चेतनमय मूरति ध्यान समाधि गहाय ॥ तूं० ५ ॥
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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