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ज्ञानानन्द
(१३)
राग धनाश्री –तीन ताल
( वालो माहरो ) कयौं भटके परवासा, तुज मठ निरखो साहेब वासा | वा० ॥ टेक ॥
बिनु अनुभव ताकुं नहिं जाने,
देखे कैसें उजासा ॥ वा० १ ॥
नहिं मानस नहिं नारी साहिब, नहिं नपुंसक आगम भासा ।
पांचो रंग जाके नहिं दिसे,
तामे नहिं गंधरस का वास| || वा० २ ॥
नहिं भारी नहिं हलका साहेब, नहिं रूखा नहिं चिकनासा |
शीता ताता जाके न पावे,
कोइ संघयण जाके नहिं पावे,
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अप्रतिबंध आगति गति जासा ॥ वा० ३ ॥
नहिं कोइ संठाण निवासा |