SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९१ जीभलडी रे तने ७२ जैसे राखहु वैसे ३६ जोगी एसा होय ५५ जो जो देखे वीतरागने ९९ जो नर दुःखमें ८७ जंगल वसाव्युं रे ८३ ज्यां लगी आतमा २८ ज्ञानकी दृष्टि निहालो ८९ टेक न ले रे ७५ तुम मेरी राखो ३७ तोलों बेर बेर ८६ त्याग न टके ३३ थिर नाहि रे थिर ९३ दिलमां दीवो करो १४ दूर रहो तम दूर २७ देखो पिया आगम ४७ देखो माइ अजब १०० धर्म पथ ढूंढा ६० धार तरवारनी ८८ धीर धुरंधरा ८० निंदक वावा वीर हमारा ४३ परमगुरु जैन कहो क्यों होवे ४० परमपुरुष तुं हि ६५ परमेसर शुं प्रीतडी ४४ परमप्रभु सब जन ३२ प्यारे काहेकुं ललचाय .. ६ प्यारे चित्त विचारले २६ प्यारे साहेब सुं चित्त ८१ प्रभुजी तुम चंदन हम पानी ७३ प्रभु मोरे अवगुण चित्त ९५ प्रेमळ ज्योति तारो २५ बडि दगाबाज ५४ बाद बादीसर ३९ बावा हम विचार ८ बिनजारा खेप भरी भारी ९० भक्ति शूरवीरनी साची १०१ भक्ति भगवतमें ९२ भगवत भजजो रामनाम ५६ भजन विनुं जीवित जेसे प्रेत १ भोर भयो उठ जागो ३४ मन न काहु के वश ५८ माया कारमी रे ४९ माया माहा उगणी २ मेरे तो मुनि वीतराग २१ मेरे पियाकी निशानी ५१ में कीनो नहि २० मैं कैसे रहुं सखी ९६ मंगल मंदिर खोलो १६ मंदिर एक बनाया हमने . ५ या नगरी में क्युं कर
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy