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________________ ४१ ४३. परम गुरु जैन क्यों होवे ४४. परम प्रभु सब जन' शब्द ध्यावे ४५. चेतन जो तुं ज्ञान अभ्यासी ४६. जिऊ लाग रह्यो परभाव में ४७. देखो माइ अजव रूप जिनजी को ४८. जव लग आवे नहिं मन ठाम ४९. चेतन अब मोहि दर्शन दीजे ५०. चिदानन्द अविनासी हो ५१. में कीनो नहीं तो बिन ५२. सज्जन राखत रोति भलि ५३. आज आनंद भयो ५४. बाद बादीसर ताजे ५५. जो जो देखे वीतराग ५६. भजन बिनुं जीवित जैसे प्रेत ५७. ए परम ब्रह्म परमेश्वर ५८. माया कारमी रे ५९. कब घर चेतन आवेंगे मेरे -६०. धार तरवारनी सोहिली ६१. कुंथु जिन ! मनडुं किमही न वाझे ६२. अब हम अमर भये न मरेंगे ६३. राम कहो रहमान कहो ६४. शहेर वडा संसारका -६५. परमेसर शुं प्रीतढी रे ६६. सुणि पंजर के पंखियां रे ६७. शीतल शीतलनाथ सेवो x ४६ ४८ ४९ ५१ ५२ ५३ ५४ ५५ ५६ ५७ ५८ ५९ ६० ६१ ६२ ६३ ६५ ६६ ૬૮ ७० ७१ ७२ ७३ ७४ ७५
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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