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________________ खरशे [२१३] . सं० बाल-बाळ "चिकुरः कुन्तलो बालः कचः केशः" (अमरकोश मनुष्यवर्ग श्लो० ९५) "कुन्तलाः कचाः वालाः स्युः"-(हैमअभिधान चिंतामणि कांड ३ श्लो० २३१) २४३. खरशे-खर जायगा । सं० क्षरिष्यति-प्रा० खरिसइ-खरिस्से-खरशे। मूल धातु 'क्षर' है। भजन ९२ वां २४४. रुदामां-हृदय में 'हृदय' शब्द का ही 'रुदा ऐसा विकृत उच्चारण है। भजन ९३ वां २४५. दीवेल-दीप में जलने योग्य तैल । सं० दीपस्य तैलम्-दीपतैलम्-प्रा०-दोवतेल-दीवएल-दोवेल। गूजराती में 'दीवेल' का प्रसिद्ध अर्थ एरंडी का तैल है। 'कोपरेल' 'एरंडेल . इत्यादि शब्दो में अन्त्य 'एल' 'तैल' का विकृत उच्चारण है। 'तैल' शब्द का साधारण भ'व 'तिलों का तेल' है परन्तु 'कोपरेल' आदि शब्दों का अन्त्य 'एल' जो 'तैल का परिणाम है (तैल-तेल-एल) उसका भाव 'तिलों का तेल' नहि समजना किन्तु मात्र तेल --स्नेह-समजना । आचार्य हेमचन्द्र के कथनानुसार म्रक्षण, तैल, स्नेह, अभ्यञ्जन ये चारों शब्द पर्यायवाची हैं:--"म्रक्षणं तैलं स्नेहः अन्यञ्जनम्।" - (हैमअभिधानचिन्तामणि कांड ३.श्लो०८०-८१
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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