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________________ विसारी - [२१] अर्थसाम्य दोनों हैं। पुरुषवाची माटी, माटीडी (गू०) माडु (कच्छी ) श_ का मूल भी 'मर्त्य ही प्रतीत होता है। २३४. विसारी-बीसर जाना-विस्मरण हो जाना । सं० विस्मर-बीसर । 'विसारी' का मूल 'वीसर' में है। भजन ९० वां २३५. राची-चना-दाग करना-आसक्त होना । सं० रन-यति प्रा० रज्जा-राजइ-राचद । ग्रा० 'रज' का भूतकृदंत रजिअ-राजिअ-चिअ-राची। गुज० 'राचवू' का मूल प्रस्तुत 'रज' में हैं। २३६. पांच-पांच तन्मात्रा-पृथ्वी तन्मात्रा, जल तन्मात्रा, वायु तन्मात्रा, तेज तन्मात्रा, शब्द तन्मात्रा । - पचीस-सांख्यदर्शन संमत प्रकृति के परिणामरूप पचीस तत्त्व हैं। २३७. अलगा-लगा हुआ नहि--भिन्न । सं० अलग्न-प्रा० अलग्ग । प्रस्तुत 'अलगा' शब्द का 'अलग्ग' शब्द के साथ अक्षरसाम्य और अर्थ साम्य दानां हैं। २३८. ओळख्या--पहिचाना । सं० अवलक्षते-प्रा० ओलक्खार--ओलखे (गुज०)। सं० अवलक्षितः-प्रा० ओलविखओ ओळल्यो (")। बहुवचन-ओळख्या।
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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