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________________ उलटपलट [१९१] विस्तीर्ण करना चाहिए । इसी प्रकार गुजरातो 'उलटपालट' शब्द का. भी संबन्ध 'अल्लट्टपल्लट्ट' से बैठेगा । देश्य 'अल्लमपल्ल में मूल शब्द 'पर्यस्त' हो सकता है । 'पर्यस्त' का प्राकृत होगा "पल्लट्ट' । यही 'पल्ल' द्विरुक्त होने से 'पल्लपल्लट्ट' होकर उससे देश्य 'अल्लट्टपल्लट्ट' शब्द आया हो ? इस तरह ले उसको लाने में उसके अर्थ की भी क्षति नहि । १४७. विमासी-विचार करके 'वि+मर्श धातु से प्राकृत 'विमास' होकर उसपर से 'विमासी' रूप आता है। सं० विमृश्य-प्रा०विमासिअ-विमासी भजन ३९ वां १४८. भो-भय सं० भय-अ०प्रा० भयु-भउ-भो । भजन ४१ वां १४९. त्रिगुन-सत्व, रज और तम यह तीन गुन ! १५०. फांसा-पाश फांसी सं० पाश-फास-फंस-फांसा गुज० फांसलो 'फंगना' और 'फसवु (गुज०) क्रियापद का भी मन 'पाश' में है । " पशण बन्धे" (घातपारायण अगदिगा
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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