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________________ २० इस शैली से सम्पादित कोई पुस्तक नहीं देखी ।। पंडितजी ने इसके गीतों में प्रयुक्त २६७ शब्दों की व्युत्पत्तियां दी हैं । भाषाविज्ञान की दृष्टि से ये बहुत रोचक और. महत्त्वपूर्ण हैं । पंडित वेचरदासजी प्राकृत के विशेषज्ञ और अनोखे जानकार हैं। उनका पांडिल्य इन शब्दों के अर्थ और उनकी व्युत्पत्ति के बताने · में दिखायी पड़ता है । जिन शब्दों की व्युत्पत्ति . पर पंडितजीने प्रकाश डाला है उनमें से बहुतों के परम्परागत स्वरूपों का हमें नया परिचय मिलता है । पहले ही शब्द 'भोर' की पंडितजीने जो व्याख्या लगभग साढे चार पन्नों में की है उसे पढ़ कर मुझे 'भोर' शब्द एक नये रंग और स्वरूप में दिखलायी पड़ने लगा। पंडित वेचरदासजी गुजराती हैं । हिन्दी उनकी मातृभाषा नहीं है । इससे उनकी भाषा में हिन्दी लिखने के क्रमसे पृथकता. दिखायी देती है । उनका अक्षर-विन्यास भी कई स्थानों पर हम को खटकता है। 'रात्रि' का 'रात्री', 'समझना' का 'समजना' 'नहीं' का 'नहिं' 'लोग' का 'लोक'-चे प्रयोग हिन्दी पढ़ने लिखने वालों को खटकेंगे । परन्तु हमारे लिये तो इन खटकने वाली वस्तुओं के कारण, जो पंडितजी के हिन्दी भाषाभाषी न होने की साक्षी हैं, इस संग्रह और उसके सम्पादन का मूल्य और अधिक हो जाता है । पंडित बेचरदासजी ऐसे पंडित हिन्दी के साहिल की पूर्ति में लगे हुए हैं यह हिन्दी साहित्यं के व्यापक और राष्ट्रीय स्वरूप का द्योतक है । मैं इस संग्रह का कृतज्ञता और प्रेम से स्वागत करता हूं। लखनऊ १०, मार्गशीर्ष ९५ पुरुषोत्तमदास टंडन ता. २६-११-३८
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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