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________________ दश दरवाजे [१६९] भजन १६ वां · दश दरवाजे। . शरीर के अंदर से मल नीकलने के दरवाजे दश है। दो आंख, दो कान, दो नाक, दो कक्षा, गुदा और जननेंद्रिय; ए दश स्थानों से निरंतर मल नीकलता रहता है। 'नाक' के दो छिद्र होने से 'दो नाक' कहा गया है। ८८. बुंद 'बिन्दु शब्द में स्वर का व्यत्यय होने पर अन्य 'इ' का 'अ' होने से 'बुंद' शब्द होता है: बिन्दु-बुदि (व्यत्यय) से बुंद । गुजराती भाषामें 'बिन्दु' के अर्थ में 'मांडु' शब्द आता है। यह 'मोडु' भी विन्दु' का ही परिणाम है। 'बिन्द' में 'न' कार के प्रभाव से स्थान साम्य से 'व' का अनुनासिक 'म' हो गया है। और 'द', 'ड' के रूप में आया है। ८९. षट् रस छ रस। मधुर, अम्ल (खा) लवण (खारा) कटु (कडवा) तिक्त (तीता) और तूग ये छ रस हे। ९०. भूखो-जीसकी भूख शांत न हुई हो ऐसा। सं. त्रुभुक्षितः प्रा. बुहक्खिओ । 'वुहुक्खि' में 'ब' और 'ह' एक हो जाने से 'भ' हो गया है अतः 'हक्खि' से 'भुक्ति शब्द बनता है । 'भुक्खिअ' से 'भूखो' शब्द सहज में आता है।
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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