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________________ [१६४] धर्मामृत मुनि' "पब्वइए अणगारे पासंडे चरग-तावसे भिक्खू । पारवायएं य संमणे" प्रस्तुत गाथा में भिन्न भिन्न संप्रदाय के साधुओं के साधारण नाम बताये हैं। ___'पासंड' वा 'पाखंड' शब्द मूलतः 'झूठ' अर्थ में नहीं है किंतु समय बीतने पर वह शब्द शनैः शनैः 'झूठ' अर्थ में आ गया। कारण-वे वे संप्रदायों में जैसे जैसे 'झूठ-धतिंग' बढता गया वैसे वैसे संप्रदाय सामान्यवाची भी 'पासंड' वा 'पाखंड' शब्द केवल 'झूठ-धतिंग' अर्थ में रूढ होता गया । अमरकोशकार लिखता है कि-" पाखण्डाः सर्वलिङ्गिनः"(ब्रह्मवर्ग द्वितीयकांड श्लो० ३४५) अर्थात् "सब मत वालों के लिए 'पाखंड' शब्द का व्यवहार है।" अमरकोशकार के समय में 'पाखंड' शब्द 'झूठ' अर्थ में प्रचलित था ही नहि वह कैसे कहा जाय ? परंतु कोशकार स्वयं बौद्ध होने से उस के ध्यान में अशोक की धर्मलिपि में वा बौद्धपिटको में प्रयुक्त 'पाखंड' शब्द का मूल भाव रहा होगा ततः उसने 'पाखंड' शब्दे का मूल भाव ही अपने कोश में बताया होना चाहिए । अमरकोश के टोकाकार ने 'पाखंड' शब्द का, मूळ कोशकार से सर्वथा विपरीत अर्थ बताया है। टीकाकार महेश्वर कहता है कि"पाखण्डः बौद्ध-क्षपणकादिषु दुःशास्त्रवर्तिपु" अर्थात् “दुःशास्त्रो में मानने वाले बौद्ध और जैन इत्यादि के लिए 'पाखण्ड' शब्द
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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