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________________ डे [१६१] भजन १२ वां ६६. बूडे-बूड जाय । - सं० बुडति-प्रा० बुड्डइ । उस पर से 'बूडे ' पद आया है । 'बोळवू' (गूज० ) क्रियापद का मूल भी 'बुह' में है। 'बुड' धातु छट्ठा गण का है । संभव है कि 'वुड' धातु देश्य हो इस तरह का उसका विलक्षण उच्चारण है। ६७. बामण-ब्राह्मण । ' सं० ब्राह्मण-प्रा० बम्हण । 'बम्हण' शब्द से बामण । 'ब्राह्मण' में मूल धातु 'बृह' है । 'वृह' का अर्थ बृहत्ता है । ६८. काठ-काष्ठ-लकडा । सं० काष्ठ-प्रा--कद-काठ । - 'काठी काटुं' वगेरे गुजराती शब्दों के मूल में 'काष्ठ' शब्द है। ६९. होठ--ओष्ठ । सं० ओष्ठ-प्रा० ओट । 'ओ' के 'ओ' को 'ह' सदृश बोलने. से 'होठ' पद आया है। 'होठ' में सर्वथा स्पष्ट हो नहि है परन्तु गुज० 'ओळवू' का 'होळ उच्चारण के समान 'होठ' के 'ह' का उच्चारण है। ७०. हलावे-हिलाते । सं० 'चल' का प्रेरक 'चाल' । 'चाल' का प्राकृत चलावचलावइ-चलावे-हलावे । 'हलाव में मूल 'च' हा के समान बोला जाता है।
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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