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________________ [१५८] धर्मामृत 'पाखे' 'पांख' 'पंखी' 'पंखा' ये सब शब्दों के मूलमें भी 'पक्ष' शब्द है । 'पखाज' शब्द का 'पख' भी 'पक्ष' जन्य है । ( पखाज - पक्षवाद्य ) ६२. भांखे - भाषण करे - बोले सं० भाषते । 'ष' का 'ख' उच्चारण करने से ' भाखते ' । 'भाखते' से 'भाखे' वा 'भांखे' । 'भा' के 'आ' का अनुनासिक ध्वनि करने से 'भा' का 'भां' हो जाता है । एक अवर्ण के अढार भेद है और उसमें उसका अनुनासिक भेद भी समाविष्ट ६३. रीता - खाली - निष्फल | 1 सं० रिक्त - प्रा०रित । 'रित्त' से रीता । 'रिक्त' में धातु 'रिच्' है । ६४. छिनाला - व्यभिचारी । प्रस्तुत में 'एक लक्ष्य पर स्थिर न रहनेवाला ' ' (6 आचार्य हेमचन्द्र अपनी देशीनाममाला में लिखते हैं कि जारेसु छिन्न- छिन्नाला " - ( वर्ग तृतीय लो० २७ ) उक्त उल्लेख से 'छिन्नाल' शब्द का 'जार' - ' व्यभिचारी' अर्थ प्रतीत है । प्रस्तुत 'छिनाला' वा गुजराती के 'छिनाळवा' शब्द का मूल 'छिन्नाल' शब्द में है । 'छिन्नाल' शब्द यद्यपि देश्य है तो भी विशेष विचार करने से उसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार हो सकती है । 'छिन्नाल' शब्द में 'छिन्न' और 'काल' ये दो पद · मूल .
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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