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________________ . [१३४] . धर्मामृत और 'विईत' से 'वीत' । 'वीत' है तो भूतकृदन्तमूलक शब्द। 'मुक्त-मुक्क-मूकना' प्रयोग के समान 'व्यतीत-विईत-बीत -बीतना' होना चाहिए । 'व्यतीत' से 'वितीत', 'वितीत' से 'वितीअ' और 'वितीअ' से हिंदी का भूतकृदंत 'वीता' और गूजराती का 'वीत्यु' आता है । और स्वार्थिक 'इल्ल' प्रत्यययुक्त 'वितीएल्ल' पद से गुजराती का 'वीतेलं' होता है। व्यतीत-वितीत-वितीअ-वितीरं-वीत्यु (गूजराती) वितीअ-वितीएल्लड-बीतेलं (,)। प्रस्तुत पद का 'वीत्या' रूप 'वीत्यु' का सप्तमी विभक्तिवाला स्त्रीलिंगी रूप है । 'वेलायां व्यतीतायाम् ' वाक्य का ठीक भाव 'वेला वीत्यां' से धोतित होता है अर्थात् 'वीत्यां' पद सतिसप्तमी का सूचक है। सद्गत रा. रा. नरसिंहरावभाई,* गूजराती 'वीत क्रियापद को 'वि+इ' के भूतकृदंत 'वीत' उपर से निप्पन्न करते हैं और * रा. रा. नरसिंहरावभाई के 'गुजराती भाषा अने साहित्य' नामक पुस्तक में 'वीत्यु' संबंधे जो उल्लेख किया गया है उसकी ओर मेरा लक्ष्य प्रस्तुत टिप्पणी लिखते लिखते गया । पहेले की उस तरफ मेरा लक्ष्य हुआ होता तो उनकी साथ एतद्विषयक विचारविनिमय अवश्य शाक्य था । क्यों कि उनकी और मेरी बीच में विचारविनिमय का प्रसादमय पत्रव्यवहार तो था हो ।
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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