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________________ [१३२] धर्मामृत | प्रस्तुत 'आर' वाली कल्पना योग्य हो तो 'वधारना' गुजराती 'वधारकुं' क्रियापद भी ' वृद्धि + कार' शब्द से न लाकर संस्कृत वृध् प्रा० वधूं धातु को उक्त रीति से 'आर' प्रत्यय लगा कर 'वधारना' बनाने से अधिक सरलता दीखती है । हिन्दी 'वरना' के स्थान में गुजराती में 'वधार' शब्द प्रसिद्ध है । प्राकृत व्याकरण में मात्र एक 'भ्रम' धातु से प्रेरणासूचक 'ओढ' प्रत्यय लगाने का विधान हैं । "भ्रमेः आडो वा " - (८-३-१५१ हेमचन्द्र प्राकृत व्याकरण ) तो भी 'उंबाडवु' 'सुझाडवु' 'दझाढवु ' वगेरे गुजराती क्रियावाचक पढ़ों को देखने से उक्त 'आड' प्रत्यय की व्यापकता माननी पडती है । प्रस्तुत 'आड' को देख कर ही उपर्युक्त 'आर' प्रत्यय की कल्पना खडी हुई है और 'आड' तथा 'आर' में विशेष भेद भी नहीं है किन्तु विशेष साम्य है । अत्य 'ड' और '२' दोनों मूर्धन्य है । I १४. खिन - क्षण - समय का एक लघुतम नाप | सं० क्षण - प्रा० खण | 'ख' उपर से 'खण' और 'खिन' । 'क्षण' का दूसरा उच्चारण 'छण' वा 'छिण' भी होता 'छिण' उपर से 'छिन' रूप आता है । प्राकृत भाषा में 'क्ष' का 'ख' उच्चारण अधिक व्यापक है और 'क्ष' के बदले में '' तथा 'झ' का उच्चारण भी पाया जाता है फिर भी जितना 'ख' उच्चारण व्यापक है उतना इतर नहि । एक ही वर्ण के ऐसे ·
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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