SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भोर [११९] " बन्धनमुक्त करते हैं उस समय के लिए हमारी काठियावाडी भाषा में ' पहर' शब्द का व्यवहार प्रचलित है- सूर्योदय के पूर्व का समय - बडी फजर का समय पहर' शब्द से धोतित होता है । काठियावाडी प्रयोग 'प्रहर छूटी' के देखने से प्रतीत होता है कि ' पहर' शब्द 'भोर' की तरह स्त्रीलिंगी है। संभव है कि उक्त 'भोर' और प्रस्तुत 'पहर' का सम्बन्ध संस्कृत शब्द 'प्रहर' की साथ हो । 'भोर' के समान प्रस्तुत ' पहर' शब्द भी प्रातःकाल का वाची है और संस्कृत ' प्रहर 'प्रा. 'पहर के उपरसे ‘ भोर ' और ' पहर' की व्युत्पत्ति बन सकती है । गुजराती के 'पहेलो पोर' ' बीजो पोर' ' बपोर' शब्दो में जो 'पोर' अंश है वह ' प्रहर '-' पहर' का ही रूपान्तर है । जिस प्रकार ' प्रहर' - 'पहर ' से 'पोर ' का उद्भव है उसी का भी उद्भव हो " 6 " प्रकार प्रहर पहर ' से 'भोर' सकता | अर्थदृष्टि से भी ' पहर' और 'भोर' में खास अंतर नहि दीखता । 'भोर' का 'भ' 'पहर' के 'प' और 'ह' के मिश्रण का परिणाम है । प्राकृत उच्चारणो में 'फ' के स्थान में 'भ' और 'ह' का प्रचार प्रसिद्ध है (देखो - " फो भ-हौ " ८-१-१३६ हेमचन्द्र प्राकृत व्याकरण ) : सं० प्रहर - प्रा० पहर पहुर-पहार - पोर सं. प्रहर - प्रा. पहर पहोर होर भोर | ,, -
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy