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________________ गवरी (९२) भगवत भजजो, रामनाम रणुंकार आ तन होडी, सतधर्म रुदामां धार-टेक भवसागर तो भर्यो भयंकर तृष्णानीर अपार कायाबेडी छे कादवनी, आडाझुड अहंकार सद्गुरु संगे, तरी उतरो भवपार नरदेह तो दुर्लभ देवने, ते पाम्यो तुं पिंड सत्संग करजो साधु पुरुषनो, लेजो लाभ अखंड पछे पस्ताशो, वखत जाय आ वार कीट ब्रह्मादिक सकळ देहने जमरायनो त्रास, क्षणभंग काया जाणजो निश्वे एक काळनो ग्रास अल्पनी बाजी, तेमां शुं करवो अहंकार कैक जन्म तो मनुष्यजातमां धर्या देह अपार मद माया ने मोह जाळतो धर्यो शिर पर भार प्रभु नव जाण्या, तेथी अंते थयो छे खुवार कहे गवरी तुं सद्गुरु केरो राख विश्वास भजन करो दृढ भावथी तो मळे सुख अविनाश मान कह्युं मारुं, नहीं तो खाशे जमनो मार [१०३] . भग० भग० भग० भग० भग०
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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