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________________ संपादकीय प्रस्तुत भजनसंग्रह में जैन और सनातनी दोनों कवियों के मिलकर १.१ भजन का संग्रह है। संग्राहक की दृष्टि में सर्वधर्मसमभाव का उदार सिद्धान्त प्रधानतम है इससे ही इसमें अनेक संत भक्तों की वाणी का सुमेल किया गया है और संग्रह का नाम धर्मामृत रक्खा गया है । भजनकर्ता जैन वा सनातनी होने पर भी उन सब का एक ही आशय भजनो में झलक रहा है। किसी संप्रदाय का अनुयायी - चाहे जैन हो, वैष्णव हो, शैव हो वा अन्य कोई :भी हो ---- अपनी अपनी धर्मभावना को सुरक्षित रख कर भी प्रस्तुत संग्रह के भजन को संतोषपूर्वक गा सकता है। धर्मों के संप्रदायों में क्रियाकांड के अनेक प्रभेद होने पर भी आध्यात्मिक मार्ग में - धर्म के सच्चे व्यवहारु मार्ग में - सव' धर्म - सव संप्रदाय, एक समान भूमिका पर ही रहते हैं। इसका साक्ष्य प्रस्तुत भजनसंग्रह दे रहा है । प्रस्तुत संग्रह से एक भी स्तोता को अंतर्मुख होने में: कुछ थोडी वहुत सहायता मिली तो उनका सर्व श्रेय उन संत पुरुषों को है जिन के ये भजन हैं।
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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