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________________ यशोविजय (५८) राग कालिंगडो-तीन ताल माया कारमी रे, माया म करो चतुर सुजाण । माया वायो जगत वलुधो, दुःखियो थाय अजान ॥ जे नर मायायें मोहि रह्यो, तेने सुप्नें नहो सुख ठाम ॥ माया० १ ॥ न्हाना मोटा नरने माया, नारी ने अधकेरी । चली विशेष अधकी माया, गरढाने जाजेरो ॥ माया० २ ॥ माया कामण माया मोहन, माया जग धूतारी । मायाथी मन सहुनुं चलीयुं, लोभीने बहु प्यारी ॥ माया० ३ ॥ माया कारन देश देशान्तर, अटवी वनमा जाय । जहाज बेसीने द्वीप द्वीपान्तरे, जइ सायर जंगलाय ॥ माया० ४॥ माया मेली करी बहु भेली, लोभे लक्षण जाय । भयथी धन धरतीमा गाडे, उपर विसहर थाय ॥ माया० ५ ।। योगी जति तपसी संन्यासी, नग्न थइ परवरिया । उंचे मस्तक अग्नि तापें, मायाथी न उगरिया ।। माया०६॥
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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