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________________ स्व-शिक्षा __ ४१ श्री कालुगणी तथा आचार्यश्री के निकट-सम्पर्कमें बीता है। ये मुनिश्री चौथमलजी द्वारा रचित भिक्षुशब्दानुशासन की वृहद् वृत्तिके लेखक है। 'प्राकृत-काश्मीर' इनकी छोटी किन्तु सुन्दरतम रचना है। ये प्रकृतिके साधु है। इन्होंने निरवद्य विद्यादानके रूपमे तेरापन्थ गणकी अमूल्य सेवायें की हैं और कर रहे है। सोलह वर्षको अवस्थामे आप कवि बने। पट्टोत्सव, मर्यादोत्सव आदि विशेष अवसरों पर आपकी कविता लोग बडे चावसे सुनते। आपने १८ वर्षकी उम्रमे 'कल्याण-मन्दिर' की समस्या-पूर्तिके रूपमे 'कालु-कल्याण-मन्दिर' नामक एक स्तोत्र रचा । आपका स्वर बडा मधुर था । आप उपदेश देते, व्याख्यान करते, गाते, तव लोग मुग्ध बनजाते। बहुधा ऐसा भी होता कि आप गीतिका गाते और कालुगणि उसकी व्याख्या करते । आप कई बार कहा करते हैं कि "मैं ज्यों-ज्यों अवस्थामे बड़ा होता गया, त्यों-त्यो मोटे स्वरमे गाने और बोलनेकी चेष्टा करने लग गया। कारणकि ऐसा किये बिना प्रायः अवस्थापरिवर्तनके साथ-साथ (१६ वर्षके बाद ) एकाएक कण्ठ बेसुरे बन जाते है।" ___ आप सदा कालुगणीके साथमे रहे। सिर्फ एक बार शारीरिक अस्वास्थ्यके कारण कुछ महीनोंके लिए आपको अलग रहना पड़ा। गुरु-सेवाकी सतत प्रवृत्तिके कारण आपको वह बहुत असह्य लगा। कालुगणी स्वयं आपको अलग रखना नहीं चाहते
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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