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________________ आचार्य श्री तुलसी गये। गुरुदेवसे प्रार्थना की। दीक्षाकी पूर्व स्वीकृति और आदेश दोनों लगभग साथ-साथ हो गये। यह एक विशेष बात है। गुरुदेवसे इतना शीघ्र दीक्षाका आदेश मिलना एक साधारण बात नहीं है। आपको वह मिला, इसका कारण आपकी असाधारण योग्यताके सिवाय और क्या हो सकता है। इसमे कोई सन्देह नहीं, श्री कालुगणिने उसी समय आपकी छिपी हुई महानताका अनुभव कर लिया था। आपके ज्ञाति भी इससे अपरिचित नहीं थे। हमीरमलजी कोठारी, जो आपके मामा होते है, आपसे बडा प्यार करते। वे आपको तुलसीदासजी कहकर सम्बोधित करते और कहते-हमारे तुलसीदासजी बड़े नामी होंगे। प्रकाश प्रकाशमेसे नहीं निकलता। वह आवरणमेसे निकलता है। आवरण केवल ढकना नही जानता, हटना भी जानता है। वह अन्धोंको ही दृष्टि नहीं देता, दृष्टिवालोंको भी दृष्टि देता है। आपका विशाल व्यक्तित्व बचपनके आवरणमे छिपा हुआ था। फिर भी कृतज्ञताके साथ हमे कहना चाहिए कि उसने आपको पहचाननेकी दृष्टि दी।
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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