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________________ १८५ स्फुट प्रसग आचार्यश्री तुलसीका व्यक्तित्व, जो बहुत वर्षों तक अपने आपमे समाये रहा, निखरता जा रहा है । सव क्षेत्रोमे उसके प्रति पूजा, प्रतिष्ठा और सम्मानकी भाग्ना है। पर क्यों है ? इस पर भी एक सरसरी दृष्टि डाललेनी चाहिए। आप एक सन्त है, आचार्य है, आध्यात्मिक क्रान्तिके वाहक नेता और अहिंसक समाजके अग्रणी है। हमे उनका व्यक्तित्व स्वीकार करनेसे पहले मुडकर देखना होगा कि क्या इस भौतिक युगमे आपके जीवनका कुछ उपयोग है ? क्या विद्युत्-यन्त्रोंकी चकाचौंधमे अध्यात्मकी किरणें कुछ कर सकेंगी ? इसका उत्तर देना कठिन है, यह नहीं मानना चाहिए। परिस्थितियोके उतार-चढ़ावमे रथका पहिया किधर घूमेगा, यह कौन जान सकता है। ___ आचार्यश्रीने जनताके जीवन-शोधनके लिए चारित्र्यका आश्रयण नहीं किया है । आपके सहज जीवन-शोधनसे जनताको उसकी प्रेरणा मिली है। इसीलिए यह परमार्थकी भूमिकामं रहकर भी जन-जीवनको जगानेवाला महामन्त्र है । अन्न, वस्त्र, मकान आदि सुलभ करनेवाला ही जनताके लिए उपयोगी है, यह मानना इतनी बडी वनभूल है, जितनी कि एक वनमृर्स ही कर सकता है। चारित्र-बल के बिना उक्त पदार्थों से मिफ जीवन चल सकता शान्ति नहीं मिल सकती। मानवका पंच पहावी तरह जीवन रताना ही नहीं होता। उसके लिए शान्ति और विराम द्वार वरं रहते है । हम इन तत्त्वको समन गये तो आचार्ण जीवन
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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