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________________ स्फुट प्रसग १८१ डूंगरमलजी ये दो सिंघाडे काठियावाड सौराष्ट्र) मे थे । विरोध काफी प्रबल था । चौमासा नजदीक आगया, फिर भी स्थान न मिला। चौमासा कहाँ हो, इसकी वडी आत्म-वल और चिन्ता हो रही थी । वहाँसे कई व्यक्ति चाडवास सात्विक प्रेरणाएँ पहुंचे। आचार्यश्रीसे सबकुछ निवेदन किया । आप कुछ क्षण मौन रहे । उनके मनोभाव कुछ असमञ्जस थे। क्या होगा ? इसकी कुछ चिन्ता भी थी । किन्तु आचार्यश्री ने इस भावनाको तोड़ते हुए कहा - “यद्यपि वहाँ साधु-साध्वियोको स्थान और आहार- पानीके लिए बड़ी कठिनाइयों झेलनी पडरही है, फिर भी उन्हे घबडाना नहीं चाहिए। मुझे विश्वास है, मेरे साधु-साध्विया घबडाने वाले है भी नहीं। उन्हें भिक्षुस्वामी के आदर्शको सामने रखकर ताके साथ कठिनाइयोका सामना करना चाहिए। जहां कहीं जैन, अर्जेन, हिन्दू, मुस्लिम कोई स्थान दें, वहाँ रहजाए अगर कहीं न मिले तो श्मशानमे रह जाएँ। उन्हें वही रहना है, सत्यअहिंसात्मक धर्मका प्रचार करना है ।" आचार्यश्री के इन स्फूर्तिभरे शब्दोंने न केवल खिन्न श्रावको मे चेतन्यही उडेल दिया, बल्कि साधुओको भी इससे बडी प्रेरणा मिली। वे सब कठिनाइयो के बावजूद भी अपना लक्ष्य साधते रहे। चौबीस दिन पूरे वीतये । फिर भी पावतीं माधु छ समझ नहीं सके । आचार्या अल्पाहार वि
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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