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________________ १६६ प्राचार्य श्री तुलसी लोगोंका आवागमन, हजारों व्यक्तियोसे बातचीत और प्रश्नोत्तर आदि २ प्रवृत्तियां आपके लिए सहज जैसी है। आपको विश्राम करनेकी जितनी प्रार्थना सुननी होती है, उसका शताश भी विश्राम करनेका अवसर नहीं मिलता। आप कहते है-"मैं जो काम करता हूं उसमे मुझे पूरा रस मिलता है। हमारे साधुओंको प्रत्येक कायमे उत्साह और आनन्द होता है-होना चाहिए । इसलिए अलग विश्राम करनेकी फिर क्या आवश्यकता ?" यह बात भगवान् महावीरकी “ननत्थ निजरट्ठयाए" केवल आत्मआनन्दके लिए करो- वाली शिक्षाकी याद दिला देती है। ___आपकी ज्ञान-रश्मियोका आलोक और व्यक्तित्व जनताके लिए महान् आकर्पणके हेतु है। समयकी खींचातानीमे भी कई व्यक्ति आपका सफल समय मात्रासे अधिक लेते है, तब दूसरोको अखरे बिना नहीं रहता। वे अपनी मनोभावना आपके कानों तक पहुंचा देते है। उत्तर मिलता है- "कोई व्यक्ति मेरे साथ हो बातचीत करनेकी विशेष उत्सुकता लिए आता है, तब मै उसे निराश कैसे करूं।" एक विशाल संघके शक्तिसम्पन्न नायक इतने सामीप्यसे बात करें, एक-एक व्यक्तिको समझायें, गणके इतिहाससे लेकर निगूढ रहस्य तक बतायें-यह एक आश्चयकी बात है और कार्यभारको अधिक गुरुत्त्व देनेवाली कथा है । अनेक आध्यात्मिक आयोजनोंका संचालन करनेके रिक्त आप अनेक उन्नायक प्रवृत्तियोके स्रोत भो बनते है। आपकी हार्दिक हिलोरें सचमुच दूसरोंको अचम्भेमे डालनेवाली होती है ।
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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