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________________ १४६ आचार्य श्री तुलमी सम्प्रदाय मिल जायं, यह तो सम्भव नहीं है। किन्तु एक सम्प्रदाय दूसरे सम्प्रदायके साथ अन्याय न करे, घृणा न फैलाये, आक्षेप न फैलाये, आक्षेप न करे, विचार-सहिष्णु रहे, थोडेमे मन-भेद मिट जाय तो बस फिर एकता ही है। साम्प्रदायिक एकताका यह सवश्रेष्ठ व्यावहारिक मार्ग है। सब सम्प्रदाय मिटकर एक बन जायं, इसमे कितनी कठिनाइया है। दूसरे शब्दोंमे कितनी असंभावनाएं है, यह किसीसे छिपा नहीं है। उस स्थितिमे आपसी सद्भावना ही एकत्व हो सकती है। आपकी अपनी नीति इस एकताके अनुकूल है। आप साम्प्रदायिक वैमनस्य और खण्डनात्मक नीतिमे विश्वास नहीं करते। दूसरे सम्प्रदायों पर आक्षेप करनेकी नीतिको आप र साम्प्रदायिक कलहका मूल-मन्त्र मानते है। ____ आपने जयपुरकी एक विशाल परिपद्मे प्रवचन करते हुए कहा:_ "धर्म-सम्प्रदायोंमे समन्वयके तत्त्व अधिक है, विरोधी तत्त्व कम। उस स्थितिमे धार्मिक व्यक्ति विरोधी तत्त्वोंको आगे रखकर आपसमे लडते है, यह उनके लिए शोभाकी बात नहीं है। उनको समन्वयको चेष्टा करनी चाहिए।" वह दिन धर्म-सम्प्रदायोंके लिए पुण्य दिन होगा, जिस दिन उक्त विचार फलवान होंगे।
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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