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________________ १३६ आचार्य श्री तुलनी उठे धमके प्रति दृढ श्रद्धालु बन गये। 'अमर रहेगा धर्म हमारा' की आवाज बुलन्द हो उठी। तेरापन्थके प्रथम आचार्य श्री भिक्षुगणीने धार्मिकोको यह चेतावनी दी कि यदि धर्म हिसा और परिग्रहका अखाडा बना रहा, उसके नामपर बड़े-बडे मकान और पूजी एकत्र की गई, धनिक-निर्धनका भेद चलता रहा तो अवश्य ही उसके शिरपर एक दिन खतरेकी घण्टी बजेगी। भगवान् महावीरकी वाणीका प्रतिविम्ब ले भिक्षु स्वामीसे जो किरणें फैली, उनका आचायश्रीने महान् उज्जीवन किया। लोग जब कहते है कि आज वैज्ञानिक-समाजकी धर्म पर आस्था नहीं है, तब आप इस तथ्यको स्वीकार नहीं करते। आपकी धारणा है कि इसमे वैज्ञानिक समाजका दोप नहीं है। यह सब धार्मिकोंने धमके नामपर जो खिलवाड की, उसका परिणाम है। धर्म सबके हितकी वस्तु है। उसपर किसीको आपत्ति नहीं हो सकती। किन्तु अहिंसा और सत्य जिसका स्वरूप है, अपरिग्रह जिसकी जड़ है, वह धर्म हिंसा, झूठ और परिग्रहका निकेतन बन जाय, तब उसे लोग कैसे अपनायें ? कैसे उससे सुख-शान्तिकी आशा रखे । धर्मकी जो विडम्बना हो रही है, उसे देखकर आपके हृदयमे बड़ी भारी वेदना होती है। मथुराके टाउन-हालमे प्रवचन करते हुए आपने कहा : "मुझे इस बातका खेद है कि लोगोंने धर्मको जातिके रूपमे
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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