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________________ जवसम्पर्क १२७ जानने का ज्ञान कि 'क' क ह ग या नहीं, की सम्भावनाके विषय में पूछा गया तो उन्होने उत्तर दिया कि मुक्त प्रात्माए गुणमें एक समान है, अत ऐसी भेद-बुद्धि उनमे नही रह सकती। आचार्यश्री में विद्वत्ता, नैतिक एवं आध्यात्मिक विचार-शक्ति तथा चारित्रकी उच्चताके साथसाथ अपनी मातृभाषामे भाषण देनेकी प्रखर शक्ति है। वे हमेशा सैकडो मनुष्योके बीच, जिनमें साधु-साध्विया, श्रावक-श्राविकाए एव अन्य भी होते है, जैन-धर्म के मुख्य तत्त्वो पर प्रभावोत्पादक भाषण करते है । इसके अतिरिक्त उनकी स्मरण-शक्ति भी अद्भुत है । मैने पूज्यजी महाराज को चातुर्मासमे रात्रिके समय विशाल जनसमूहमेंजोकि नि सन्देहरूपसे नैतिक एव आध्यात्मिक ज्ञानको प्राप्त करते है, रामायणका कण्ठस्थ पाठ करते सुना है। यद्यपि मेरा विचार पूज्यजी महाराजके साथ कुछ दिन और रहने का था पर बगालसे साम्प्रदायिक अशान्तिके समाचार पाने से एक मप्ताह बाद शीघ्र ही जाना पड़ा। जाने के समय मैने मन में सोचामें आपके पुन दर्शनोके लिए जा रहा है। मुझे इसमें सन्देह नही कि आचार्यश्री के दर्शन करनेवालो-सभी सज्जनोके मनमें ऐसी ही भावना रहती है।" धमक्षेत्रमे सम्प्रदायवादकी भीषण आग जल रही हैं। वह इसीलिए कि धार्मिक व्यक्ति समभावी नहीं रहे। समभाव जीवन की सार्वभौम सत्ता है। वह बिना कुछ किये दूसरोंको आत्मसान् कर लेती है। किन्तु जात-पात आदिके छोटे-छोटे बन्धनोमे बंध कर आदमी अपनी असीमताको खो बैठता है।
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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